महात्मा गांधी जी ने भारत के इतिहास तथा इसकी समस्याओं के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के उपरांत महसूस किया कि देश का शिक्षित युवा वर्ग यदि अपने शिक्षा प्राप्त करने की प्रक्रिया के साथ-साथ समाज सेवा का कार्य भी करे तो प्रत्येक देशवासी एक दूसरे की समस्याओ व आवश्यकताओ के अवगत होते हुए एक अटूट सम्बन्ध मेँ बन्ध जायेगा।
सन् १९५० में प्रथम शिक्षा आयोग ने छात्रो द्वारा स्वेच्छा से राष्ट्र सेवा की सस्तुति की थी। सन् १९५८ में तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरु द्वारा दिए गए निर्देशों ,१९५६ की शिक्षा मंत्री की बैठक, १९५९ की ही डॉ० सी०डी० देशमुख की अध्यक्षता में गठित समिति की शिफरिशो, १९६० में प्रोफेसर के०जी० सैयद्दीन द्वारा विश्व के कुछ देशो के छात्रो द्वारा की गयी राष्ट्रीय सेवा योजना के अध्ययन, शिक्षा समिति (१९६५-६६) के अध्य्क्ष डॉ० डी०एस० कोठारी की सन्तुति,१९६७ की शिक्षा मंत्रियो की बैठक १९६७ की ही उपकुलपतियो की ही बैठक तथा १९६९ की शिक्षा मन्त्रालय व विश्व विद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियो की बैठक जैसे विभिन्न चरणों से होते हुए राष्ट्रीय सेवा योजना की स्थापना २४ सितम्बर १९६९ को देश के ३७ विश्व विद्यालयो मेँ मात्र ४०,००० छात्र संख्या के साथ की गयी थी।
Posted by k.s.Aithani
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